मकान देख रहे है मगर घर बनाने की किसी को फ़िक्र नहीं,सारे रिश्ते उलझ गये है धागों की तरह जैसे उसे सम्भालने की किसी को फ़िक्र नहीं ।

मकान देख रहे है मगर घर बनाने की किसी को फ़िक्र नहीं,सारे रिश्ते उलझ गये है धागों की तरह जैसे उसे सम्भालने की किसी को फ़िक्र नहीं ।

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